वास्ते हज़रत मुराद-ए- नेक नाम       इशक़ अपना दे मुझे रब्बुल इनाम      अपनी उलफ़त से अता कर सोज़ -ओ- साज़    अपने इरफ़ां के सिखा राज़ -ओ- नयाज़    फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हर घड़ी दरकार है फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हो तो बेड़ा पार है

 

 

हज़रत  मुहम्मद मुराद अली ख़ां रहमता अल्लाह अलैहि 

 

हज़रत बहा-ए-उद्दीन ज़करीया सुह्रवर्दी

रहमतुह अल्लाह अलैहि

आप की विलादत बा सआदत ५६६ हिज्री मुल्तान में हुई । आप के वालिद माजिद का इस्म गिरामी हज़रत मौलाना वजीहा उद्दीन मुहम्मद क़ुरैशी था। आप के जद आली हज़रत कमाल उद्दीन अली शाह क़बीला क़ुरैश से ताल्लुक़ रखते थे । आप के जद्द-ए-अमजद मक्का मुअज़्ज़मा से पहले ख़्वारिज़्म आए , फिर मुल्तान में मुस्तक़िल सुकूनत इख़तियार की। हज़रत ख़्वाजा बहा-उद-दीन ज़करीया मुल्तानी रज़ी अल्लाह ताली अन्ना सिलसिला सुहरवर्दिया की अज़ीम कड़ी हैं। हज़रत की ज़ात सतूदा सिफ़ात गौना गों ख़ूबीयों की हामिल है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

जब हज़रत बहा-उद-दीन रज़ी अल्लाह ताली अन्ना बारह बरस के हुए वालिद बुजु़र्गवार विसाल फ़र्मा गए। आप की जबीन मुक़द्दस से आसार सईदी अह्द तफ़ूलियत ही से अयाँ थे। आप निहायत ज़हीन वाक़्य हुए,इसी वजह से आप ने कमसिनी में क़ुरान-ए-पाक हिफ़्ज़ करकेतक़रीना एक सोचवा लैस माहिर असातिज़ा से उलूम ज़ाहिरी की तकमील फ़रमाई और मशाइख़ वालमाइकी बारगाहों में हाज़िरी देते रहे और उलूम-ओ-फ़नून कयास क़दर बुलंद मंसब पर फ़ाइज़ हो ए के मुज्तहिद वक़्त बिन गए। ऐसी अज़ीम शौहरत पाई के सत्तर उल्मा-ओ-फुज़ला-ए-रोज़ाना आप से इस्तिफ़ादा करते ।

क़ुरान-ए-पाक हिफ़्ज़ करने के बाद खुरासान चले गए जहां सात साल बुज़्रगान-ए-दीन - से उलूम ज़ाहिरी-ओ-बातिनी की तहसील की। ब आप इबादत वमजाहदात और रियाज़ात में मुनहमिक थे और इसी दौरान हरमैन शरीफ़ैन की ज़यारत से मुशर्रफ़ हुए। मदीना मुनव्वरा के अज़ीम मुहद्दिस शेख़ कमाल उद्दीन मुहम्मद यमनी रज़ी अल्लाह ताली अन्ना सेआलम हदीस क़ादिरस लिया और उस्ताज़ के साथ अनबयाइआलीहम अस्सलाम की मुक़द्दस ज़मीन बैत-उल-मुक़द्दस में मज़ारात अनबया-ए-अलैहिम अस्सलाम की ज़यारत से तसकीन क़लब हासिल की।

इस केबाद बग़दाद शरीफ़ क़दमरंजा हुए । शेख़ अलशीवख़ हज़रत-ए-शैख़ शहाब उद्दीन सुह्रवर्दी रहमतुह अल्लाह अलैहि की बारगाह में हाज़िरी दी और अपने को मुर्शिद के हाथों बीच दिया।और मुर्शिद ने भी क़लील मुद्दत में ख़िरक़ा वख़लाफ़त से नवाज़ा और हुक्म फ़रमाया कि मुल्तान वापिस जाओ और उलूम वज़ाहरी बातिनी के फ़्यूज़ वबरकात से इस दियर को मुस्तफ़ीज़ वमसतफ़ीद करो।मुर्शिद पाक हज़रत-ए-शैख़ शहाब उद्दीन सुह्रवर्दी रहमतुह अल्लाह अलैहि के हुक्म के मुताबिक़ मुल्तान पहुंच कर सुहरवर्दिया सिलसिले की बुनियाद रखी।आप बाबा गंज शुक्र के ख़ालाज़ाद भाई थे। मशहूर शायर इराक़ी आप का दामाद था। वालई सिंध और मुल्तान नासिर उद्दीन क़बाचा को आप से बहुत अक़ीदत थी।

चुनांचे जब आप रवाना हुए तो शेख़ जलाल उद्दीन तबरेज़ी रज़ी अल्लाह ताली अन्ना हमराह हो गए मगर जब नीशा पर में उनकी जानिब से मुर्शिद की उलफ़त-ओ-मुहब्बत में कमी महसूस की तो आप को ग़म लाहक़ हुआ। इसी वजह से जलाल उद्दीन तबरेज़ी रज़ी अल्लाह ताली अन्ना से जुदाई इख़तियार फ़रमाकर अकेले मुल्तान चले आए। मुल्तान उस वक़्त दार उल-इस्लाम था ।आप रज़ी अल्लाह ताली अन्ना के पहुंचते ही मुल्तान का नक़्शा ही बदल गया ,उस की शौहरत हमदोश सुरय्या हो गई। आप ने वहां एक मुदर्रिसा क़ायम फ़रमाया जिस से हिंदूस्तान में बेपनाह इशाअत इस्लाम-ओ-तब्लीग़ दीन हुई। आप साहिब ज़र भी हुए। ,आप नेइस की मदद से भी ग़रबाओफ़क़राइकी ख़ूब इमदाद की और इस्लाम की वुसअतों को राह दी और इशाअत इस्लाम केलिए राहें हमवार कीं। आप अख़लाक़ करीमा के पैकर और हुस्न-ओ-जमाल के गह्वर करामत अज़माई के मज़हर थे कि आप के दस्त रास्त पर बहुत सी करामतों का ज़हूर हुआ और आप तमाम ज़िंदगी मख़लूक़ ख़ुदा की ख़िदमत में मसरूफ़-ए-अमल रहे ।

मुल्तान में इन दिनों हिंदूओं का ग़लबा था और प्रहलाद जी ख़ुद तो मुवह्हिद थे और ख़ुदा का इनकार करने वाले अपने बादशाह बाप से जंग भी की मगर प्रहलाद जी की वफ़ात के सैंकड़ों साल बाद उन के मंदिर पर्बत पर मस्त ग़ालिब आ गए और प्रहलाद जी का मंदिर हिंदूमज़हब का मर्कज़ बिन गया।मुल्तान पहुंच कर आप ने तब्लीग़ शुरू कर दी, प्रहलाद मंदिर के मुतवल्लियों के ग़ैर इंसानी रवैयों से नालां लोग जौक़ दर जौक़ हज़रत की ख़िदमत में पहुंच कर हलक़ा इस्लाम में दाख़िल होने लगे ।

आप ने शुरू में मद रस्ता उल-इस्लाम क़ायम किया और बाद में उसे दुनिया की सब से बड़ी पहली इक़ामती यूनीवर्सिटी की हैसियत देदी , आप ने तालीम के साथ तब्लीग़ का सिलसिला शुरू किया , जो बात में कहना चाहता हूँ वो ये है कि आज देन सिखाने के लिए किसी ने बिस्तर और किसी ने क्लाशनीकोफ़ उठा ली है , इस के मुक़ाबले में हज़रत बहाओ उद्दीन ज़करीया मुल्तानी रहमतुह अल्लाह अलैहि ने क्या तरीका-ए-कार इख़तियार किया? ये गौरतलब है ।

ग़ौस अलालमीन ने अपनी इक़ामती यूनीवर्सिटी में आला तालीम के साथ मुख़्तलिफ़ आलमी ज़बानों मसलन संस्कृत , बंगाली , सिंधी , फ़ारसी , अरबी , जादी , बर्मी , मरहट्टी और इंडोनेशी वग़ैरा के शोबे क़ायम किए , और मज़कूरा ज़बानों के तलबा को तालीम से आरास्ता कर के ग्रुप तशकील दीए और उन ग्रुपों को जमातों की शक्ल में को तिजारत और तब्लीग़ की ग़रज़ से मुख़्तलिफ़ ममालिक के लिए रवाना किया । तिजारत के लिए हज़ारों अशर्फ़ियों की सूरत में ख़ुद सरमाया मुहय्या फ़रमाते और हिदायत फ़रमाते रिज़्क हलाल के हुसूल के लिए तिजारत करनी है और ख़ुदा की ख़ुशनुदी के लिए तब्लीग़ भी , वफ़ूद को रवानगी से पहले पाँच बातों की नसीहत फ़रमाते।

१।तिजारत में इस्लाम के ज़रीं उसूलों को फ़रामोश ना करना।

२। चीज़ों को कम क़ीमत मुनाफ़ा पर फ़रोख़त करना

३। ख़राब चीज़ें हरगिज़ फ़रोख़त ना करना बल्कि उन्हें तलफ़ कर देना ।

४। ख़रीदार से इंतिहाई शराफ़त और अख़लाक़ से पेश आना।

५। जब तक लोग आप के क़ौल-ओ-किरदार के गरवीदा ना हो जाएं उन के सामने इस्लाम पेश ना करना।

उसी ज़माने दरयाए रावी मुल्तान के क़दीम क़िले के साथ बहता था और उसे बंदरगाह की हैसियत हासिल थी , कश्तीयों के ज़रीये सिर्फ़ सिखर भक्कर ही नहीं मंसूरा , इराक़ , ईरान , मिस्र ,दिल्ली और दक्कन तक की तिजारत होती इस तरह मुल्तान को दुनिया बहुत के बड़े इलमी तिजारती और मज़हबी मर्कज़ की हैसियत हासिल हुई और सिर्फ़ हिंदूस्तान ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हज़रत बहाओ उद्दीन ज़करीया मुल्तानी रहमतुह अल्लाह अलैहि नाम और पैग़ाम पहुंचा, आप के पैग़ाम से लाखों इंसान हलक़ाबगोश इस्लाम हुए और आप ने लोगों के दिलों में इस तरह घर बना लिया कि आठ सदीयां गुज़रने के बावजूद आज भी लाखों इंसान नंगे पांव और सर के बिल चल कर आप के आस्ताने पर हाज़िरी देते हैं और अक़ीदत के फूल निछावर करते हैं।

फ़वाइद इल्ल फ़वाइद में हज़रत निज़ाम उद्दीन औलिया रहमतुह अल्लाह अलैहि फ़रमाते हैं कि एक रोज़ एक बुज़ुर्ग आए और आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के साहबज़ादे शेख़ सदर उद्दीन आरिफ़ रहमतुह अल्लाह अलैहि को एक लिफ़ाफ़ा दिया और कहा कि ये ख़त हज़रत बहा-उद-दीन ज़करीया रहमतुह अल्लाह अलैहि को पहुंचा दो और कहना कि एक साहिब ने दिया है। हज़रत सदर उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि ने वो ख़त अपने वालिद की ख़िदमत में पेश करके बाहर आए तो देखा कि वो बुज़ुर्ग जा चुके थे। ख़त पढ़ने के साथ ही हज़रत बहा-उद-दीन ज़करीया रहमतुह अल्लाह अलैहि उस दार फ़ानी से रुख़स्त होगए। हज़रत सदर उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि बाहर खड़े थे कि एक आवाज़ बुलंद हुई कि दोस्त बदोसत रसीद ये आवाज़ सुनते ही हज़रत सदर उद्दीन रहमतुह अल्लाह अलैहि आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के हुजरे में गए तो देखा कि आप रहमतुह अल्लाह अलैहि रुख़स्त होचुके थे। हज़रत बाबा फ़रीद शुक्र गंज रहमतुह अल्लाह अलैहि के मलफ़ूज़ात में है कि जब आप रहमतुह अल्लाह अलैहि रुख़स्त हुए उस वक़्त पाक पतन में हज़रत बाबा फ़रीद शुक्र गंज रहमतुह अल्लाह अलैहि भी बेहोश होगए। जब होश आया तो फ़रमाया कि हमारा भाई इस दार फ़ानी से रुख़स्त होचुका है। फिर उठ कर अपने मुरीदों के साथ हज़रत बाबा फ़रीद गंजबख़श रहमतुह अल्लाह अलैहि ने आप रहमतुह अल्लाह अलैहि की ग़ायबाना नमाज़ जनाज़ा पढ़ी।

आप ६६६ हिज्री में इसदार फ़ानी से रुख़स्त हुए । आप का रोज़ा अनवर मुल्तान शरीफ़ पाकिस्तान में गहवारा इलम वारफ़ान और मर्कज़ फ़्यूज़ वबरकात है